आज के इस आर्टिकल में वर्ण (Varn) के दूसरे प्रकार व्यंजन वर्ण के बारे में बताया गया हैं। जिसमे आप व्यंजन किसे कहते हैं, व्यंजन वर्ण की परिभाषा क्या होती हैं और व्यंजन वर्ण के कितने प्रकार होते हैं आदि इन सभी चीजों के बारे में पढ़ सकते हैं।
व्यंजन वर्ण किसे कहते हैं और व्यंजन वर्ण की परिभाषा और प्रकार कितने होते हैं।
व्यंजन वर्ण (Vyanjan Varn) – व्यंजन वर्ण उस वर्ण को कहा जाता हैं, जिसका उच्चारण स्वर वर्ण की सहायता से होता हैं।
व्यंजन वर्ण के उदाहरण – क, ख, ग, घ आदि।
‘व्यंजन’ वर्ण का स्वर की तरह स्वतंत्र उच्चारण संभव नहीं है। इसके उच्चारण में फेफडों की हवा पूर्ण-अपूर्ण रूप से रुककर निकलती है।
जैसे – क, ख, ग, घ, च, छ, ज, झ, ट, ठ, ड, ढ, त, थ, द, ध, प, फ, ब, भ इत्यादि। इन सभी व्यंजन वर्णो में ‘अ’ की ध्वनि मिली हुयी है।
हम देख चुके हैं की व्यंजन वर्ण स्वर की सहायता से बोले जाते हैं और स्वर वर्ण व्यंजन में मात्रा के रूप में मिलता है।
स्वरों की मात्राओं के चिन्ह पहले दिए जा चुके हैं। स्वर की मात्राएँ व्यंजनों में इस प्रकार लगती हैं।
क | का | कि | की | कु | कू | कृ | के | कै | को | कौ | कं | कः |
च | चा | चि | ची | चु | चू | चृ | चे | चै | चो | चौ | चं | चः |
त | ता | ति | ती | तु | तू | तृ | ते | तै | तो | तौ | तं | तः |
अनुस्वार और विसर्ग
अनुस्वार (ं) और विसर्ग (ः) न तो स्वर है, न व्यंजन, पर ये स्वरों के सहारे चलते हैं। स्वर और व्यंजन दोनों में इनका उपयोग होता है।
जैसे – अंगूर, रंग। न स्वरों के योग और न व्यंजनों के योग, फिर भी ये ध्वनि का वहन करते हैं, अतः ये दोनों ‘अयोगवाह’ है। अयोगवाह का अर्थ होता हैं – योग न होने पर भी जो साथ रहे।
अ + ं = अं
अ + ः = अः
हिंदी में ‘अनुस्वार’ का प्रयोग तो खूब होता है, पर ‘विसर्ग’ का प्रयोग बहुत ही कम होता हैं।
संयुक्त व्यंजन (संयुक्ताक्षर)
‘संयुक्ताक्षर’ दो व्यंजनों के मेल से बनते हैं। ये स्वंतंत्र वर्ण नहीं माने जाते हैं। क्ष, त्र और श्र हिंदी वर्णमाला के संयुक्त व्यंजन हैं। ये वर्ण इस प्रकार बने हैं :
- क ् + ष = क्ष
- त ् + र = त्र
- ज ् + ञ = ज्ञ
- श ् + र = श्र
संयुक्ताक्षर में दो या दो से अधिक व्यंजनों का मेल होता है और उनके बीच स्वर नहीं रहता है। स्वर नहीं रहने के कारन ही संयुक्ताक्षर आधे लिखे जाते हैं।
जैसे – प्रहार, स्वर, मूल्य, प्लुत, उत्पादन, सत्य आदि।
व्यंजन वर्ण के प्रकार या भेद (Vyanjan Ke Kitne Bhed Hote Hain)
व्यंजन वर्ण के भी स्वर वर्ण की तरह 3 भेद अर्थात प्रकार होते हैं जो की निम्नलिखित हैं –
1 . स्पर्श व्यंजन – जो व्यंजन वर्ण तालु, मूर्धा, दाँत एवं ओठ स्थानों के स्पर्श से बोले जाते हैं, उन्हें स्पर्श व्यंजन कहा जाता हैं। स्पर्श व्यंजन नीचे दिया गया हैं –
कवर्ग | क | ख | ग | घ | ङ |
चवर्ग | च | छ | ज | झ | ञ |
टवर्ग | ट | ठ | ड | ढ | ण |
तवर्ग | त | थ | द | ध | न |
पवर्ग | प | फ | ब | भ | म |
उपयुक्त 25 वर्ण ‘स्पर्श’ व्यंजन वर्ण की कोटि में आते हैं।
2 . अन्तःस्थ व्यंजन – य, र, ल, व – इन चार व्यंजनों का उच्चारण कंठ, दाँत, ,जीभ, तालु आदि के सटाने से होता है, पर किसी अंग का पूर्ण स्पर्श नहीं होता हैं। इन चारों व्यंजन वर्णों को अन्तःस्थ व्यंजन कहते हैं। इनमें य और व ‘अर्धस्वर’ भी कहलाते हैं।
जैसे – य, र, ल और व।
3 . उष्म व्यंजन – जिन व्यंजनों का उच्चारण स्वर यंत्र के घर्सण एवं उष्मवायु प्रक्षेप से होता है, उन्हें उष्म व्यंजन कहा जाता हैं।
जैसे – श, ष, स, ह।
उच्चारण में लघुप्रक्षेप की दृस्टि से व्यंजन के दो भेद हैं :
1 . अल्पप्राण – जिन व्यंजनों के उच्चारण में ‘हकार’ की ध्वनि नहीं होती है, उन्हें अल्प्राण व्यंजन कहा जाता है।
कवर्ग से पवर्ग तक के प्रत्येक वर्ग का पहला, तीसरा और पाँचवा वर्ण तथा अंतःस्थ अल्प्राण में होता है।
जैसे – क, ग, ङ, च, ज, ञ, ट, ड, ण, त, द, न, प, ब, म, य, र, ल, व।
2 . महाप्राण – जिन व्यंजनों के उच्चारण में ‘हकार’ की ध्वनि निकलती है, उन्हें महाप्राण व्यंजन कहा जाता है।
उपयुक्त प्रत्येक वर्ग का दूसरा और चौथा वर्ण तथा उष्म वर्ण ‘महाप्राण’ व्यंजन होता हैं।
जैसे – ख, घ, झ, ठ, ढ, थ, ध, फ, भ, श, ष, स, ह।
उच्चारण के समय स्वर-तंत्रियों की स्थिति और कंपन के आधार पर व्यंजन के दो भेद हैं :
1 . घोष वर्ण – जिन व्यंजनों के उच्चारण में स्वर-तन्त्रियों में स्वास-वायु के कारण कंपन होता है, उन्हें घोष व्यंजन कहा जाता है।
प्रत्येक वर्ग का तीसरा, चौथा, पांचवा वर्ण:, य, र, ल, व और ह घोष व्यंजन वर्ण है।
ध्यान दें : सभी स्वर वर्ण भी घोष वर्ण ही है।
2 . अघोष वर्ण – जिन व्यंजनों के उच्चारण के समय स्वास-वायु से स्वर-तंत्रियों में कंपन पैदा नहीं होता है, उन्हें अघोष व्यंजन का जाता है।
प्रत्येक वर्ग का पहला और दूसरा वर्ण तथा श, ष, स अघोष व्यंजन वर्ण है।
अनुतान
अनुतान :- मुँह से उच्चारण की गयी ध्वनि की लहरियों को अनुतान कहा जाता है। जब हम बोलते हैं तो ‘वाक्यों’ और शब्दों में ‘सुरों’ या ‘तानों’ की लहर उठती है।
उस ‘सुर-लहर’ के कारण ‘शब्द’ और ‘वाक्य’ के अर्थ में परिवर्तन आ जाया करता है।
अनुतान उस सुर-लहर को कहा जाता है, जिसके कारण वाक्य और शब्द का अर्थ परिवर्तित हो जाता है। ‘अनुतान’ वास्तव में सुर-लहर है, जो सभी ‘घोष’ ध्वनियों में होता है। जैसे – अच्छा, हां, बस इत्यादि।
Final Thoughts –
आप यह हिंदी व्याकरण के भागों को भी पढ़े –
- व्याकरण | भाषा | वर्ण | स्वर वर्ण | व्यंजन वर्ण | शब्द | वाक्य | संधि | स्वर संधि | व्यंजन संधि | विसर्ग संधि | लिंग | वचन | कारक
- संज्ञा | सर्वनाम | विशेषण | क्रिया | काल | वाच्य | अव्यय | उपसर्ग | प्रत्यय | समास | विराम चिन्ह | रस-छंद-अलंकार