आज के इस आर्टिकल में Hindi Grammar के अंतिम भाग रस (Ras), छन्द (Chhand) और अलंकार (Alankar) के बारे में बताया गया हैं।
मैंने इस वेबसाइट HindiDeep.in पर एक-एक करके सम्पूर्ण हिंदी व्याकरण भाषा से लेकर विराम-चिन्ह तक बता दिया हैं।
अगर आप पुरे हिंदी व्याकरण को एक ही जगह पढ़ना चाहते हैं हमारे वेबसाइट पर आकर पढ़ सकते हैं। तो दोस्तों अब हम आज का यह आर्टिकल को शुरू करते हैं।
जिसमे आप रस किसे कहते हैं।, छन्द किसे कहते हैं।, अलंकार किसे कहते हैं और रस, छंद और अलंकार के प्रकारों की पूरी जानकारी पढ़ सकते हैं।
Ras, Chhand और Alankar in Hindi Grammar | Ras, Chhand और Alankar Kise Kahate Hain
(1.) रस किसे कहते हैं और रस के कितने भेद होते हैं।
सामान्य अर्थ में ‘रस’ चखने की चीज होती है। जिस तरह अच्छे ‘रस-पान’ से हमारी जीभ तृप्त होती है, उसी तरह ‘वाक्य-रस’ से हमारी आत्मा तृप्त होती है।
रस (Ras) – जिसकी अनुभूति ‘ह्रदय’ को हर्ष, ‘मन’ को तन्मयता, ‘विचार’ को एकांतता, ‘शरीर’ को पुलकन, ‘नेत्र’ को दृश्टिसुख और ‘वचन’ को गदगद कर देती हैं, उस चमत्कारी आनंद-विशेष को ‘रस’ कहा है। रस ‘काव्य’ की आत्मा हैं।
रस के भेद या प्रकार – Ras Ke Bhed in Hindi
‘भरतमुनि‘ के अनुसार ‘विभाव, अनुभाव और व्यभिचारिभाव के संयोग से रस की निष्पति होती है। काव्य में ‘रस’ के नौ भेद होते हैं :
1 . | शृंगार रस – | खंजन मंजु तिरीछे नैननि। निजपति कहहि तिन्हहीं सिय सैननि।। |
2 . | वीर रस – | जौ राउर अनुसासन पाऊँ। कंदुक इव ब्रह्माण्ड उठाऊँ। काँचे घट जिमि डारऊँ फोरी। सकऊँ मेरु-मूलक इव तोरी।। |
3 . | हास्य रस | वर बौराह बरद असबारा। ब्याल कपाल विभूषण छारा।। |
4 . | रौद्र रस | रे नृप बालक काल बस, बोलत तोहि न सँभार। धनुही सम त्रिपरारि धनु, बिदित सकल संसार।। |
5 . | भयानक रस | धाये बिसाल कराल मर्कट भालु काल समान ते। मानहुँ सपच्छ उड़ाहिं भूधर वृन्द नाना बान ते।। |
6 . | अद्भुत रस | जस-जस सुरसा बदन बढ़ावा। तासु दुगुन कपि रूप दिखावा।। |
7 . | वीभत्स रस | उदर बिदारहिं भुजा उपरहिं। गहि पद अवनि पटकि भट डारहिं।। |
8 . | करुण रस | प्रिय पति वह मेरा प्राण प्यारा कहाँ है? दुख जलनिधि डूबी का सहारा कहाँ है? |
9 . | शांत रस | एहि कलिकाल न साधन दूजा। जोग, जग्य, जप, तप, ब्रत, पूजा।। |
ध्यान दे : आधुनिक विद्वान ‘भक्ति’ और ‘वात्सल्य’ को भी अलग रसों के रूप में मानते हैं।
(2.) छन्द किसे कहते हैं और छन्द के कितने भेद होते हैं।
छन्द (Chhand) – जो पद रचना, वर्ण, वर्ण की गणना, क्रम, मात्रा, मात्राओं की गणना, गति आदि नियमो से निबद्ध हो, उसे ‘छन्द’ कहा जाता हैं।
छन्द के नियमों का प्रयोग केवल ‘पद्य’ में होता है, ‘गद्य’ में नहीं। गद्य में शब्द क्रमानुसार होते हैं – कर्ता-कर्म-क्रिया। पद्य में इस प्रकार का कोई क्रम नहीं रहता है। ‘छंद-शास्त्र’ के नियमों के अनुसार पद्यों की रचना होती है।
छन्द के भेद या प्रकार – Chhand Ke Bhed in Hindi
मात्रा और वर्णक्रम के आधार पर छन्दों के दो भेद हैं –
(क.) मात्रिक छन्द – जिस छन्द में केवल मात्राओं को निश्चित संख्या का बंधन होता हैं, वर्ण-संख्या घट-बढ़ सकती हैं, उसे मात्रिक छन्द कहा जाता हैं।
(ख.) वर्णिक छन्द – जिस छन्द में वर्ण संख्या और मात्रा-क्रम का संयोजन होता है और जहाँ वर्णों की मात्राओं का क्रम मुख्य होता है, उसे वर्णिक छन्द कहा जाता है।
मात्रा-संख्या और वर्णक्रम के अनुसार छन्दों के भेद हैं –
(क.) सम छन्द – जिन छन्दों में चारों चरणों में मात्रा संख्या या वर्ण-क्रम एक समान होता है, उसे सम छंद कहा जाता हैं।
जैसे – चौपाई, रोला।
(ख.) अर्द्धसम छन्द – जिन छंदों में ‘पहले और तीसरे’ तथा ‘दूसरे और चौथे’ चरणों में मात्रा संख्या और वर्ण-क्रम समान होता है, उन्हें अर्द्धसम छन्द कहा जाता हैं।
जैसे – दोहा, सोरठा।
(ग.) विषम छन्द – जिन छन्दों के चरणों में मात्राओं और वर्णों की संख्या और में असमानता हो, उन्हें विषम छन्द कहा जाता हैं।
जैसे – कुंडलिया।
मात्राओं की गणना
‘स्वर’ वर्ण के उच्चारण में जो समय लगता है, उसे मात्रा कहते हैं। हस्व जैसे – अ, इ, उ, ऋ और दीर्घ जैसे – आ, ई, ऊ, ए, ऐ, ओ, औ।
छन्द-शास्त्र में ‘हस्व’ लघु (।) और ‘दीर्घ’ को गुरु (S) कहा जाता है। ‘लघु’ स्वर से युक्त व्यंजन को एकमात्रिक और ‘गुरु’ से युक्त व्यंजन को द्विमात्रिक कहते हैं।
‘मात्रा-गणना’ में ‘एकमात्रिक’ एक और ‘द्विमात्रिक’ दो मात्राओं का बोधक होता है। प्रत्येक ‘पद्य’ में कई चरण होते हैं। कुछ प्रमुख छंदों की परिभाषा और उदाहरण नीचे दिए जा रहे हैं –
1 . चौपाई – इसमें चार चरण होते हैं। प्रत्येक चरण में 16-16 मात्राएं होती है। जैसे –
मातु मोहि दीजे कछु चीन्हा। जैसे रघुनायक मोहि दीन्हा।
चूड़ामणि उतारि तब दयऊ। हरष समेत पवन-सुत लयऊ।।
2 . दोहा – इसमें चार चरण होते हैं। ‘पहले’ और ‘तीसरे’ चरणों में 13-13 मात्राएँ, ‘दूसरे’ और ‘चौथे’ चरणों में 11-11 मात्राएं होती है। जैसे –
प्रीति-सहित सब भेटे, रघुपति करुणा-पुंज।
पूछी कुशल नाथ अब, कुसल देखि पदकंज।।
3 . सोरठा – सोरठा दोहा का उल्टा होता है। सोरठा के ‘पहले और ‘तीसरे’ चरणों में 11-11 और ‘दूसरे’ और ‘चौथे’ चरणों 13-13 मात्राएं होती है। जैसे –
जेहि सुमिरत सिधि होय, गन-नायक करिवर-वन्दन।
करहु अनुग्रह सोय, बुद्धि-रासि सुभ गुन सदन।।
4 . रोला – जिसके प्रत्येक चरण में 24 मात्राएं होती है, उसे रोला छंद कहा जाता है। जैसे –
जो जगहित पर प्राण निछावर है कर पाता।
जिसका तन है किसी लोकहित में लग जाता।।
5 . कुंडलिया – ऐसे ‘पद’ को, जिसके ‘प्रारंभ’ में दोहा और ‘अंत’ में रोला ‘छंद’ हो, कुंडलियां कहते हैं। इसके प्रत्येक चरण में 24-24 मात्राएं होती है। जैसे –
लाठी में गुण बहुत है, सदा राखिए संग।
गहिरो नद नारा जहाँ, तहाँ बचावे अंग।।
तहाँ बचावे अंग, झपटि कुत्ता को मारे।
दुश्मन दावा गीर होय तिन्हहु को झारे।।
कह गिरधर कविराय, सुनो हो धुर के बाटी।
सब हथियारिन छाँड़ि हाथ में लीजै लाठी।।
6 . छप्पय – इसमें छह चरण होते हैं। ‘प्रथम चार’ चरणों में 24-24 और अंत में दो चरणों 28-28 मात्राएँ होते हैं। जैसे –
सिंधु तरण सिय सोच हरन रवि-बाल-बरन तनु।
भुज बिसाल मूरति कराल, कालहु के काल जनु।।
गहन-दहन नीरदहन लंक निःसंक बंक भुव।
जातुधान बलवान मान-पद-दवन पवन सुव।।
कह तुलसीदास सेवत सुलभ, सेवक-हित संतत विकट।
गुन गनत नमत सुमिरत जपत, समन सकल संकट विकट।।
7 . सवैया – इसके प्रत्येक चरण में 24 से लेकर 26 तक मात्राएं होती है। जैसे –
या लकुटी अरु कामरिया पर राज तिहु पुर को तजि डारौ।
आठहु सिद्धि नवो निधि को सुख नन्द की गाय चराई बिसारौ।।
8 . कवित्त – इसके ‘पहले चरण’ में 16 और दूसरे चरण में 15 अक्षर होते हैं इसमें 2 चरण होते हैं। जैसे –
ऊँचे घोर मंदर के अंदर रहन बारी,
ऊँचे घोर मंदर के अंदर रहातु है।
(3.) अलंकार किसे कहते हैं और अलंकार के कितने भेद होते हैं।
अलंकार (Alankar) – ‘अलंकार’ का अर्थ आभूषण होता है। ‘आभूषण’ से शरीर को सजाया और सुंदर बनाया जाता है उसी प्रकार – भाषा को शब्दों के अनुपम अर्थ से सुसज्जित करने वाले चमत्कारपूर्ण ढंग को अलंकार कहा जाता है।
अलंकार के भेद या प्रकार – Alankar Ke Bhed in Hindi
अलंकार के तीन भेद होते है : 1 . शब्दालंकार, 2 . अर्थालंकार, 3 . उभयालंकार।
(1.) शब्दालंकार – यह शब्दों के चमत्कार और लयात्मकता पर आधारित है। ‘शब्दालंकार’ के भेद और उदाहरण नीचे दिए गए हैं –
(क.) अनुप्रास – क्या समान वर्णों की ध्वनि बार-बार दोहराई जाती है, वहां अनुप्रास अलंकार होता है। जैसे – धर्मधुरीन धीन नयनागर। सत्य, सनेह, सील, सुखसागर।
(ख.) यमक – एक ही तरह के भिन्न-भिन्न अर्थवाले शब्द कई बार दुहराये जाते हैं। जैसे –
मूरति मधुर मनोहर देखी। भयउ बिदेह बिदेह बिसेखी बिसेखी।।
(ग.) श्लेष – एक ही पद के अनेक अर्थो के कथन को श्लेष कहते हैं। जैसे –
चिरजीवी जोरी जुरै, क्यों न सनेह गँभीर।
को घटि ये वृषभानुजा, वे हलधर के वीर।।
(घ.) वक्रोक्ति – किसी अन्य से कहे गए वाक्य का कोई अन्य अर्थ कल्प्ति करने को वक्रोक्ति कहा जाता है। जैसे –
मैं सुकुमारि नाथ बन जोगू। तुमहि उचित तप मोकहूँ भोगू।
(2.) अर्थालंकार – जहाँ अर्थ में चमत्कार हो, वहाँ ‘अर्थालंकार’ होता हैं। अर्थालंकार के भेद नीचे बताये गए हैं –
(क.) रूपक – उपमान और उपमेय का अभिन्न कथन रूपक अलंकार है। जैसे –
उदित उदयगिरि मंच पर, रघुबर बाल पतंग।
विकसे संत सरोज सब, हरखे लोचन भृंग।।
(ख.) उपमा – एक वस्तु की समता दूसरी वस्तु से दिखाई जाती है। जैसे –
नील सरोहरूह स्याम, तरुण अरुण बारिज नयन।
(ग.) उत्प्रेक्षा – किसी वस्तु को देखकर उसी के अनुरूप दूसरा काल्पनिक चित्र खड़ा किया जाता है। जैसे –
उदित अगस्त पंथ जल सोखा। जिमि लोभहि सोखहिं संतोखा।।
(घ.) विरोधाभास – विरोध न होने पर भी जहाँ विरोध का आभास दिया जाय। जैसे –
बैन जबते मधुर, तबते सुनत न बैन।
(3.) उभयालंकार – जहाँ शब्द और अर्थ दोनों का चमत्कार रहता है, उसे उभयालंकार कहा जाता हैं।
अभ्यास :
(क.) रस की परिभाषा दें।
(ख.) अलंकार किसे कहते हैं।
(ग.) छंद की परिभाषा दें।
(घ.) रस के भेदों के नाम लिखें।
(च.) अलंकार के भेदों के नाम लिखें।
Final Thoughts –
आप यह हिंदी व्याकरण के भागों को भी पढ़े –
- व्याकरण | भाषा | वर्ण | स्वर वर्ण | व्यंजन वर्ण | शब्द | वाक्य | संधि | स्वर संधि | व्यंजन संधि | विसर्ग संधि | लिंग | वचन | कारक
- संज्ञा | सर्वनाम | विशेषण | क्रिया | काल | वाच्य | अव्यय | उपसर्ग | प्रत्यय | समास | विराम चिन्ह | रस-छंद-अलंकार