आज के Hindi Grammar के इस आर्टिकल में हमने शब्द विचार के बारे में बताया हैं। जो की व्याकरण का दूसरा खण्ड हैं।
इस आर्टिकल से पहले हमने वर्ण विचार के बारे में पढ़ा था जो की व्याकरण का पहला खण्ड हैं आप वर्ण विचार के बारे में भी पढ़ सकते हैं।
अब हम आज का यह आर्टिकल को शुरू करते हैं जिसमे आप शब्द विचार क्या होता हैं, शब्द विचार की परिभाषा और शब्द विचार के प्रकारों के बारे में जानेंगे।
शब्द विचार किसे कहते हैं – Shabd Vichar Kise Kahate Hain
शब्द विचार (Shabd Vichar) – शब्द विचार व्याकरण का वह भाग है, जिसमे शब्दों के भेद, अवस्था और व्युत्पत्ति का वर्णन किया जाता हैं।
शब्द (Shabd) किसे कहते हैं और शब्द के कितने भेद होते हैं।
‘शब्द’ वर्णो और मात्राओं के मेल से बनते हैं। ध्वनियों के मेल से बने सार्थक वर्ण-समुदाय को शब्द कहा जाता हैं। मूलतः ‘शब्द’ वर्ण-मात्राओं के मेल से बनते हैं।
जैसे –
घ + र = घर
क + म + ल = कमल
ब + ा + ल + क = बालक
स + ी + त + ा = सीता
शब्द के कितने प्रकार होते हैं। – Shabd Ke Kitne Parkar Hote Hain
हिंदी व्याकरण में शब्दों के प्रकार चार तरीकों से होते हैं –
1 . अर्थ की दृस्टि से
2 . उत्पति की दृस्टि से
3 . व्युत्पत्ति की दृस्टि से (बनावट या रचना की दृस्टि से)
4 . प्रयोग की दृस्टि से
1 . अर्थ की दृस्टि से शब्दों के भेद :-
अर्थ की दृस्टि से शब्दों के दो भेद होते हैं जो की निम्नलिखित हैं –
(क.) सार्थक शब्द – जिन शब्दों का स्वयं का कुछ अर्थ होता है, उन्हें सार्थक शब्द कहते हैं।
जैसे – घर, स्कूल, मंदिर, आम इत्यादि।
(ख.) निरर्थक शब्द – जिन शब्दों का अलग कोई अर्थ नहीं होता है, उन्हें निरर्थक शब्द कहते हैं।
जैसे – टप, मस, चत, मट इत्यादि।
2 . उत्पत्ति की दृस्टि से शब्दों के भेद :-
उत्पत्ति की दृस्टि से शब्दों के पाँच भेद होते हैं –
(क.) तत्सम – जो संस्कृत के शब्द ठीक उसी रूप से हिंदी में प्रयुक्त होते हैं, उन्हें तत्सम शब्द कहा जाता हैं। ये भाषा के मूल शब्द हैं।
जैसे – रिक्त, रात्रि, मध्य, छात्र इत्यादि।
(ख.) तदभव – कुछ शब्द संस्कृत से रूपांतरित होकर हिंदी में प्रचलित हो गए हैं ऐसे तत्सम शब्द के बिगरे रूप को तदभव शब्द कहा जाता हैं।
जैसे – आग, हाथ, दूध, गाँव इत्यादि।
संस्कृत के अगिन से आग, हस्त से हाथ, क्षेत्र से खेत, दुग्ध से दूध, ग्राम से गांव, कदली से केला, सूर्य से सूरज, पंच से पाँच, कज्जल से काजल आदि बना है।
(ग.) देशज – कुछ शब्द देश के अंदर बोलचाल की भाषा से हिंदी में प्रचलित हो गए हैं। ऐसे शब्द को देशज शब्द कहा जाता हैं। ये शब्द न तो संस्कृत और न अन्य किसी दूसरी भाषा के शब्द हैं। ये स्वयं आवश्यकता के अनुसार बना लिए गए हैं।
जैसे – लोटा, पगड़ी, जूता, गाड़ी, तेंदुआ, पेट, लड़का, गाड़ी इत्यादि।
(घ.) विदेशज – कुछ शब्द विदेशी भाषाओ से हिंदी में मिला लिए गए हैं। ऐसे शब्दों को विदेशज शब्द कहा जाता हैं।
जैसे –
अंग्रेजी से : साइकिल, रेडियो, टेबुल, स्टेशन, सिगरेट, पेन, स्कूल, मशीन, बटन आदि।
अरबी से : अमीर, गरीब, तारीख, औरत, आदत आदि।
फारसी से : किताब, बाग़, खूबसूरत, शर्म, गुलाब आदि।
पुर्तगाली से : बाल्टी, आलू, कमर, पटरी, प्याला आदि।
चीनी से : चाय, लीची, चीनी आदि।
फ्रांसीसी से : अंग्रेज, काजू, कारतूस आदि।
जापानी से : रिक्शा।
(ड.) संकर – हिंदी में कुछ ऐसे शब्दों का उपयोग किया जाता है, जो दो भाषाओं के शब्दों से मिलकर बनते हैं। इस तरह के मिश्रण से बने शब्द को संकर शब्द कहा जाता हैं।
जैसे –
रेल + गाड़ी – रेलगाड़ी (अंग्रेजी + हिंदी)
टिकट + घर – टिकटघर (अंग्रेजी + हिंदी)
पान + दान – पानदान (हिंदी + फारसी)
ऑपरेशन + कक्ष – ऑपरेशनकक्ष (अंग्रेजी + संस्कृत)
3 . व्युत्पत्ति की दृस्टि से शब्दों के भेद :-
व्युत्पत्ति की दृस्टि से शब्दों के तीन भेद होते हैं –
(क.) रूढ़ – जिन शब्दों के खण्डों का अलग-अलग कोई अर्थ नहीं होता हैं, उन्हें रूढ़ शब्द कहा जाता हैं। ऐसे शब्द सदा से एक निश्चित अर्थ को लिए चल रहे हैं।
जैसे – ‘घर’ शब्द के दो खण्ड ‘घ’ और ‘र’ का अलग-अलग कुछ अर्थ नहीं होता है, लेकिन ‘घर’ का अर्थ ‘रहने का स्थान’ होता है।
(ख.) यौगिक – जो शब्द दो या दो से अधिक शब्दों से बना हो और जिसके अलग-अलग खण्डों का कुछ आठ होता हो, उसे यौगिक शब्द कहा जाता हैं।
जैसे –
हिम +आलय = हिमालय
विद्या + आलय = विद्यालय
पाठ + शाला = पाठशाला
देव + दूत = देवदूत
(ग.) योगरूढ़ – ऐसे शब्द जो दो या दो से अधिक शब्दों के मूल से बने हो और जो सामान्य अर्थ को छोड़कर विशेष अर्थ बतावें, उन्हें योगरूढ़ शब्द कहा जाता हैं।
जैसे –
लम्बा + उदर = लम्बोदर (विशेष अर्थ = गणेशजी)
चंद्र + शेखर = चंद्रशेखर
पित + अम्बर = पीताम्बर
चक्र + पाणी = चक्रपाणि
4 . प्रयोग की दृस्टि से शब्दों के भेद :-
प्रयोग की दृस्टि से शब्दों के दो भेद होते हैं –
(क.) विकारी शब्द – जिन शब्दों के रूप लिंग, वचन और पुरुष के अनुसार बदलते हैं, उन्हें विकारी शब्द कहा जाता हैं।
जैसे – लड़का, लड़की, मैं, हमें इत्यादि।
‘विकारी’ शब्द चार प्रकार के होते हैं :
(1) संज्ञा, (2) सर्वनाम, (3) विशेषण, (4) क्रिया।
(ख.) अविकारी शब्द – जिन शब्दों का रूप कभी नहीं बदलता और सदा एक समान ही रहता हैं, उन्हें अविकारी शब्द कहा जाता हैं।
जैसे – यहाँ, वहाँ, प्रतिदिन, बिना, और, परन्तु, हे, अरै इत्यादि।
‘अविकारी’ शब्द भी चार प्रकार के होते हैं :
(1) क्रिया-विशेषण, (2) सम्बन्धवाचक, (3) विस्मयादिबोधक, (4) समुच्चयवाचक।
‘अविकारी’ शब्द अव्यय होते हैं। इस तरह इसके चार प्रकार, मात्र एक ‘अव्यय’ के रूप में व्यहत होते हैं। अतः हम कह सकते हैं की प्रयोग के अनुसार शब्दों के पाँच भेद हैं –
(1) संज्ञा, (2) सर्वनाम, (3) विशेषण, (4) क्रिया, (5) अव्यय।
Final Thoughts –
आप यह हिंदी व्याकरण के भागों को भी पढ़े –
- व्याकरण | भाषा | वर्ण | स्वर वर्ण | व्यंजन वर्ण | शब्द | वाक्य | संधि | स्वर संधि | व्यंजन संधि | विसर्ग संधि | लिंग | वचन | कारक
- संज्ञा | सर्वनाम | विशेषण | क्रिया | काल | वाच्य | अव्यय | उपसर्ग | प्रत्यय | समास | विराम चिन्ह | रस-छंद-अलंकार